प्यारा गुलिस्तां




इंसानों का बेदर्दी से होता कतल- ए - आम,
जिंदगी की सुबह होने से पहले ही ढलती शाम,
किसी को भी मंज़ूर नहीं दर्द का यह प्याला
फिर भी क्यों बेबस और लाचार है आवाम!


सदियों से चला आ रहा भाईचारे का पैगाम,
उसपर हालातों का पर्दा ओड़े मजबूर इंसान,
पूरे समाज और साम्राज्य को दोषी ठहरता,
कुरीतियों का हो गया है यह ग़ुलाम!


अवनति के पथ को उन्नति का मार्ग समझा,
अधिकारों और कर्तव्यों के मायाजाल मैं उलझा,
सत्य का किया निरादार और असत्य का किया सम्मान,
अज्ञानता के अँधेरे में बिखरता सुन्दर गुलास्तान!


नवयुग के नवयुवक हैं क्रांति हम लाएंगे,
अमन और शान्ति का परचम हम लहरायेंगे,
कर्त्तव्य को देंगे महत्व और सत्य को संमान
फिर से एक बार कहलाएगा मेरा भारत महान !



~ रंजिता शर्मा




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