निर्दयता का शिखर



किसी अपने को खरोंच भी लगे तो इंसान का मन भरे,
बेजुबान मरे तो कोई उसका पकवान बनाये और प्रशंसा करे.
किसी कि चीत्कार ना सुने, किसी कि पीड़ा का एहसास ना होवे!
वह भी तो एक प्राणी है उसकी भी आत्मा रोये.

जीवन दाता तो सिर्फ एक विधाता है ,
इंसान को जीवन छीनना फिर  कैसे आता है !
क्यों इतनी आततायी है और क्यों है इतना अत्याचार,
इन्सान शायद सबसे करता है अपने स्वार्थ के लिए प्यार.

निस्वार्थी बेजुबान कुछ दे नहीं पाता तो मारा है जाता,
अपनी बलि देकर भी इस वेह्शी इंसान कि भूख है मिटाता.
और उसपर इंसान कि फितरत कि उसे खा कर भी आनंद नहीं आता.
हे इश्वर इस निर्दयता का श्रेय किसे है जाता?

मेरी आत्मा मेरे अन्तः कारन तक मुझे झिन्झोदती है,
मेरी नीर गंगा भी उस रकत गंगा के आगे अधनी प्रतीत होती है.

रंजिता शर्मा.

Any comments are welcome to rectify my writing.. ! I wrote it just to promote vegetarianism among people. Some one has to stop at some point of time and it is the time. World needs more care and attention towards the animals too. They are extinguishing from our universe. Save them. Reduce the carbon- footprints. Stop eating non-veg.